आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi

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Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi Details

PDFआदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi
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Languageहिंदी / Hindi
CategoryReligion & Spirituality
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आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi

Aditya Hridaya Stotra PDF

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:- आदित्य हृदय स्तोत्र सारांश | Aditya Hridaya Stotra in Hindi Summary

भगवान सूर्य देव की प्रार्थना है । जो राम और रावण के साथ महायुद्ध से पहले सुनाई गई थी। इस प्रार्थना को महर्षि ऋषि अगस्त्य द्वारा सुनाई गयी थी। यह पूजन तब है जब आपकी राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य ग्रहण लगा हो। इस परस्थिति में आपको अच्छे परिणाम के लिए, नियमित रूप से कर्मकाण्ड (पाठ,व्रत हवन आदि) करने होंगे।

आदित्य हृदय स्रोत भगवान सूर्य नारायण जी को समर्पित करके बनाया गया है मान्यताओं के अनुसार यह स्रोत अत्यंत ही प्रभावशाली एवं चमत्कारिक है सनातन धर्म हिंदू धर्म में सूर्य देव जी को विश्व भर में पूजा जाता है। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra

आदित्य हृदय स्तोत्र मन की शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि देता है। इस प्रार्थना के पाठ से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि से अनगिनत लाभ होते हैं। जिसके लिए आदित्य हृदय स्तोत्र के जप, पूजा पाठ हवन और व्रत रखे जाते हैं।.  आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ |Aditya Hridaya Stotra

अभी आप भगवान सूर्य देव जी की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो नियमित रूप से विधि-विधान पूर्वक आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ का गान करें यदि आपको किसी प्रकार का नेत्र रोग है, तो ऐसा माना जाता है कि इसका निवारण भगवान सूर्य देव जी की पूजा के माध्यम से किया जा सकता है यदि आप किन्हीं कारणों से नियमित रूप से आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने में असमर्थ हैं तो आप केवल रविवार के दिन आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ का गान कर सकते हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ |Aditya Hridaya Stotra

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की पूजा करने से मनुष्य के जीवन से नकारात्मक प्रभाव का अंत हो जाता है। तथा उनके जीवन में सकारात्मक पूजा की प्राप्ति होती है भगवान सूर्य देवता जी को प्रतिष्ठा एवं मान्य सम्मान का देवता माना जाता है जो व्यक्ति प्रतिदिन नियमित रूप से भगवान श्री देव की पूजा करते हैं, उन्हें समाज में मान एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra In Hindi PDF

आदित्य हृदय स्त्रोत सूर्य देव की प्रार्थना है ऐसा माना जाता है कि इसे राम और रावण के युद्ध से पहले सुनाया गया था। इस प्रार्थना को महर्षि अगस्त द्वारा सुनाया गया था उसका पूजन तक किया जाता है जब आपकी राशि अथवा जन्म कुंडली में सूर्य ग्रहण लगा हो ऐसी परिस्थिति में आप को नियमित रूप से पाठ हवन व्रत अथवा कर्मकांड अधिक करना चाहिए। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra In Hindi PDF

इतना ही नहीं आदित्य हृदय स्रोत का नियमित रूप से पाठ करने से अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं जैसे प्रसन्नता आत्मविश्वास धनसंपदा और नौकरी में पदोन्नति इत्यादि कार्यों में काफी सफलता मिलती है हृदय स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। आसान शब्दों में कहा जाए तो आदित्य हृदय स्त्रोत मनुष्य के जीवन में अनेकों चमत्कार मन करता है, इसीलिए आप सभी को भी आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ का गाना अवश्य करना चाहिए।


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आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि और नियम

  • संभव हो तो शुक्ल पक्ष के पहले रविवार ब्रहृममुहुर्त में उठकर स्नान कर इसे शुरू करें, सुबह जल्द उठकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें, तांबे के पात्र में जल लेकर उसमें पुष्‍प और चंदन डालकर अर्घ्य दें।
  • आदित्य हृदय स्तोत्र के तीन पाठ रोज सुबह 40 दिनों तक करें।
  • सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय गायत्री मंत्र का जप करें, इसके बाद आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। यह पाठ तीन बार करें।
  • पहले स्नान करें और फिर सूर्य को अर्घ्य दें, एसा लगतार 40 दिनों तक करे।
  • जो लोग आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें वो लोग रविवार को मांसाहार, मदिरा तथा तेल का प्रयोग न करें.
  • हर बार पाठ समाप्ति के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसमें करीब आधा घंटा लगेगा।


आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Complete Aditya Hridaya Stotra

विनियोगः

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः , आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा

देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः ।।

ध्यानम्- संस्कृत 

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,

जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,

त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,

विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

 रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । 

उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।

 येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । 

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । 

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । 

पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।

 एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । 

महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । 

वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । 

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । 

तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽकों शुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।

 अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। 

कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । 

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । 

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । 

नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।

 नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।

 भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।

 कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । 

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । 

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।

 यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

 कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।

 एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । 

एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥

 धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । 

त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । 

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।

 निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।

इस तरह आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra का संस्कृत पाठ समाप्त हुआ। इस स्तोत्र का हिंदी पाठ पढ़ने के लिए आप पोस्ट को आगे पढ़ सकते है। आदित्य ही एकमात्र साक्ष्य देवता है जिनको हमलोग अपनी आँखों से देख सकते है। इसलिए लिए यह आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ और ज्यादा फलदायी होता है। स्वयं श्री राम जिस स्तोत्र के पाठ मात्र से रावण जैसे योद्धा को पराजित कर सकते है तो इस स्त्रोत्र की किसी प्रमाण की आवश्क्यता नहीं है।


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:- आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ श्लोक अर्थ सहित

आदित्य हृदय स्तोत्र – हिंदी अनुवाद सहित

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥ 01. 

अर्थ :- उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।

उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥ 02

अर्थ :- यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥ 03. 

अर्थ :- सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे ।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।

जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥ 04.

अर्थ :- इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।

चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥ 05.

अर्थ :- सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।. Aditya Hridaya Stotra

रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।. 

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥ 06.

अर्थ :- भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥ 07

अर्थ :- संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥ 08

अर्थ :- भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं।

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।

वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥ 09

अर्थ :- ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥ 10

अर्थ :- इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), Aditya Hridaya Stotra

हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्ति-मरीचिमान।

तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान॥ 11

अर्थ :- हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान,.

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।

अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान:॥ 12

अर्थ :- हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले),

व्योम नाथस्तमोभेदी ऋग्य जुस्सामपारगः।

धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथिप्लवंगम:॥ 13

अर्थ :- व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले),. 

आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।

कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भव:॥ 14

अर्थ :- आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण),

नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावनः।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते॥ 15

अर्थ :- नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रए नमः।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥ 16

अर्थ :- पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥ 17

अर्थ :- आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है।

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।

नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः॥ 18

अर्थ :- उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।

ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥ 19

अर्थ :- आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः॥ 20

अर्थ :- आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra In Hindi PDF

तप्तचामिकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोsभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे॥ 21

अर्थ :- आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।

नाशयत्येष वै भूतम तदेव सृजति प्रभुः।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥ 22

अर्थ :- रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।

एष एवाग्निहोत्रम् च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम॥ 23

अर्थ :- ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥ 24

अर्थ :- वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव॥ 25

अर्थ :- राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

पूज्यस्वैन-मेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम।

एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥ 26

अर्थ :- इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं वधिष्यसि।

एवमुक्त्वा तदाsगस्त्यो जगाम च यथागतम्॥ 27

अर्थ :- महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोsभवत्तदा।

धारयामास सुप्रितो राघवः प्रयतात्मवान ॥ 28

अर्थ :- उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम हर्षमवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान॥ 29

अर्थ :- और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर

रावणम प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत।

सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोsभवत्॥ 30

अर्थ :- रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra

अथ रवि-रवद-न्निरिक्ष्य रामम। मुदितमनाः परमम् प्रहृष्यमाण:।

निशिचरपति-संक्षयम् विदित्वा सुरगण-मध्यगतो वचस्त्वरेति॥ 31

अर्थ :- उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है।

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:- भगवान सूर्य देव की आरती

॥ आरती ॥

जय कश्यप-नन्दन,ॐ जय अदिति नन्दन।

त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन,भक्त-हृदय-चन्दन॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सप्त-अश्वरथ राजित,एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी,मानस-मल-हारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित,विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर,दिव्य किरण माली॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सकल – सुकर्म – प्रसविता,सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन,भव-बन्धन भारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

कमल-समूह विकासक,नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरतअति मनसिज-संतापा॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर,भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत,परहित व्रतधारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सूर्यदेव करुणाकर,अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब,तत्त्वज्ञान दीजै॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।


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आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ के फायदे

  • सनातन धर्म हिंदू धर्म के अनुसार आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने से भक्तजनों की मनचाही इच्छा पूर्ण हो जाती है।
  • आदित्य हृदय स्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से भक्तों के पुराने से पुराने रोग भगवान सूर्य नारायण जी की कृपा से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
  • यदि आप नियमित रूप से इस स्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करते हैं तो आपके जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।
  • महर्षि वाल्मीकि के अनुसार “आदित्य ह्रदय स्त्रोत” ऋषि अगस्त्य द्वारा भगवान श्रीराम को रावण रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए दिया गया था इसलिए इसे शत्रु विनाशक आदित्य ह्रदय स्त्रोत के नाम से भी जाना चाहता है।
  • आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने से भक्तजनों के जीवन में उन्नति छाती और सुख समृद्धि बनी रहती है।
  • यदि आपके जीवन में कोई भी कार्य ठीक प्रकार से ना हो रहा हो या बने बनाए काम बिगड़ रहे हैं तो आपको आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ का गान अवश्य करना चाहिए इससे आपके सारे कार्य स्वयं पूरे होने लग जाएंगे।
  • यदि आपके कुंडली में सूर्य कमजोर रहता है तो आपको आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए।
  • किंतु इसके लिए आपका भगवान सूर्य के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं भक्ति की भावना होनी चाहिए और पूरे विश्वास के साथ कड़े नियमों के पालन के साथ आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
  • आदित्य हृदय स्रोत का नियमित रूप से पाठ करने से तू के जीवन में प्रसन्नता आत्मविश्वास धन समृद्धि एवं नौकरी में पदोन्नति जैसे समस्त कार्यों में सफलता मिलती है और उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है ।


अंतिम शब्द :

आज इस लेख में आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi की पीडीएफ दी गई है। जिसके माध्यम से आप भगवान सूर्य नारायण की भक्ति पूरे विधि-विधान और आरती के साथ कर सकते हैं इस लेख में सूर्य देव की आरती भी दी गई है जिसके माध्यम से आप भगवान की पूजा करते समय उनकी आरती के साथ सूर्य देव को शीघ्र ही प्रसन्न कर सकते हैं।

ऐसे ही धार्मिक आरती और ग्रंथों से जुड़े पीडीएफ प्राप्त करने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर विजिट करते रहें और यदि चाहे तो सूर्य देव जी की आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ और आरती को अपने अन्य सभी संबंधियों के साथ शेयर करके पुण्य के भागीदार बन सकते हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra In Hindi PDF

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:- Aditya Hridaya Stotra PDF से संबंधित प्रश्न :- FAQs

1. आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ कैसे करें?

Ans : रोज सुबह उठकर सूर्य देव को जल अर्पित करें और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें भगवान सूर्य देव को जल चढ़ाते समय सूर्य देव के सामने खड़े होकर सच्ची श्रद्धा से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करें और पाठ के पश्चात कुछ मिनट के लिए शांत मन से भगवान श्री देव का ध्यान करें।

2. आदित्य हृदय स्रोत को पढ़ने के फायदे?

Ans : Benefit of Aditya Hridaya stotra.

सनातन धर्म हिंदू धर्म के अनुसार आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने से भक्तजनों की मनचाही इच्छा पूर्ण हो जाती है।
यदि आप नियमित रूप से इस स्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करते हैं तो आपके जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।
आदित्य हृदय स्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से भक्तों के पुराने से पुराने रोग भगवान सूर्य नारायण जी की कृपा से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करने से भक्तजनों के जीवन में उन्नति छाती और सुख समृद्धि बनी रहती है।

3. आदित्य हृदय स्रोत को कैसे पढ़ें?

Ans : सुबह नियमित रूप से पहले स्नान करें और फिर सूर्यदेव का ध्यान लगाएं ऐसे लगातार 40 दिनों तक आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ का दान करें।

4. सूर्य मंत्र कैसे पढ़ा जाता है?

Ans : ॐ भास्कराय विद्महे महादुत्याथिकाराय धीमहि तमो आदित्य प्रचोदयात ।।

।। ॐ आदित्याय विद्महे मार्त्तण्डाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ।। व्याख्या – मुझे दिन के निर्माता सूर्य देव का ध्यान करें मुझे कुछ बुद्धि दे और भगवान सूर्य मेरे मन को रोशन करें।


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22 thoughts on “आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra PDF In Hindi”

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